चंद हादसों से गुजर
कि अन्जामो कि अब परवाह नही
बनाया है शक्त उनने मुझको
कि अब रहो कि परवाह नही
चलने को राहे
कि मंजिले अनेक है
गुमनामी के इस अंधरे में
कि अन नामो कि परवाह नही।
--- नरेन्द्र सिसोदिया "साहिल"
---- 24 / jan / 2002
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Monday, June 9, 2008
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1 comment:
Ab rahon ki parwah nahi at the 4th line
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