Monday, June 9, 2008

अब नामो की परवाह नही

चंद हादसों से गुजर
कि अन्जामो कि अब परवाह नही
बनाया है शक्त उनने मुझको
कि अब रहो कि परवाह नही
चलने को राहे
कि मंजिले अनेक है
गुमनामी के इस अंधरे में
कि अन नामो कि परवाह नही।

--- नरेन्द्र सिसोदिया "साहिल"
---- 24 / jan / 2002
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1 comment:

Abdullah said...

Ab rahon ki parwah nahi at the 4th line