एक बार यूं रस्ते से गुजर ।
आए मुझे कुछ चहरे नजर ।
कुछ रोते तो कुछ जो हसते ।
कुछ मस्तो से मौज जो करते ।
यूं मन में आया विचार ।
क्यों ना जिन्दगी पर करू विचार ।
पास टीला था , बैठ गया
यूं गहराई में उतरने लगा।
फिर सिर के बल भी उलझ गए ।
तर्क वितर्क से झगड़ पड़े।
झगड़ झगड़ कर सुलझ गए ।
और राज यूं खुल पड़े
टैब चहरे पर आई मुस्कान ।
थोडी सी हुई मुझे थाकन ।
फिर आत्मा को भी टटोला
टैब परिभाषा में यूं बोला
" सबकी इक राह होती है,
थोडी कठिन वो होती है ,
बस समय से साथ चलना होता है
इसी का नाम जिंदगानी होता है "
--- नरेन्द्र सिसोदिया "साहिल"
---- 1997 (I was in class 8th)
---- (c) 2008 , Narendra Sisodiya, All Rights Reserved
Monday, June 9, 2008
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1 comment:
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