लहराती हुई लहरों का, अपना न कोई आशियाना होता है ।
दूर गगन के छोर तले, साहिल का ना ठिकाना होता है।
बहारों के संग झूमती लहरे , साहिल पा आती है।
हर बार सुनहरी यादों के , पत्थर छोड़ के जाती हैं।
हर शाम बहते आती है , कंकड़ थोड़े हिल जाते है ।
लोगो के पैर तले , कंकड़ हलके हो जाते है।
हर शाम यह कश्ती पर एक नया तराना होता है।
और रात यहाँ अंधियारे में एक दर्द-ऐ- सन्नाटा होता है ।
पागल से लोग यहाँ के, लहरों पर हक जतलाते है ।
अपनी खुशी के लिए , नई कस्तियाँ बनवाते हैं।
लेकिन, अमर प्रेम की गाथा ये , लहरे न यूं रुक पाएँगी ।
ये लहरे साहिल की ही हैं , साहिल पर ही ये आएँगी ।
--- नरेन्द्र सिसोदिया "साहिल"
---- 2003
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साहिल : River Bank , leader
Monday, June 9, 2008
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